तिजारा सीट से कांग्रेस का टिकट अलवर लोकसभा के पूर्व प्रत्याशी रहे इमरान खान को मिला, योगी बालक नाथ के विरूद्व उतारा Election

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सुरेन्द्र दुआ,नूंह:( Election) जिला से सटी राजस्थान की तिजारा सीट से कांग्रेस का टिकट अलवर लोकसभा के पूर्व प्रत्याशी रहे इमरान खान को देकर भरोसा जताया हैं, जबकि भाजपा ने अलवर से पार्टी सांसद योगी बालक नाथ को चुनावी रण में उतारा हैं। भाजपा -कांग्रेस के हैवीवेट प्रत्याशी होने से दोनों दलों में धुक धुकी हैं। 2019 में भी दोनों लोकसभा का चुनाव आमने-सामने लड़ चुके हैं और बाजी भाजपा प्रत्याशी के हाथ ही लगी थी। जबकि, निवर्तमान विधायक, पूर्व मंत्री व अन्य कई दावेदार भी दोनों प्रत्याशियों के लिए रोड़ा बने हुए हैं।

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राजस्थान की अलवर लोकसभा क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बडी सीट मानी जाती हैं और लोकसभा के अंतर्गत पडऩे वाली तिजारा विधानसभा की सीमांए जिला नूंह(मेवात) से लगी हैं और मेवात के ठोंडाओं(नेताओं) का लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा की कई सीटों पर अच्छा खासा दखल रहता हैं। राजस्थान के सियासी जानकारों की माने तो वर्ष 1993 में से हर 5 साल में राजस्थान में सरकार बदलने की परम्परा चली आ रही है लेकिन कांग्रेस इस बार इस परम्परा को बै्रक लगाने का दावा पेश कर रही है। माना जा रहा है कि भाजपा ने यू.पी. की तर्ज पर राजस्थान में भी योगी मॉडल लाने के लिए योगी बालक नाथ को इस बार विधानसभा के चुनावी मैदान में उतारा हैं। जबकि, कांग्रेस ने अपने मौजूदा समर्थित विधायक का टिकट काटकर युवा चेहरा इमरान खान पर दाव खेला हैं।

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यहां, यह बताना भी जरूरी है कि कांग्रेस प्रत्याशी इमरान खान की जिला नूंह(मेवात) के गांव सबरस में ससुराल होने व कांग्रेस का टिकट उनके दामाद के हाथ लगने से उनकी ससुराल की पाल व अन्य पालों के नेता व कार्यकर्ताओं में उनकी तिजारा विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार कमान संभाल ली हैं। निवर्तमान विधायक व अन्य पार्टियों के दावेदारों की टिकट कटने से उनमें व उनके कार्यकर्ताओं में असंतोष की झलक दिखाई दे रही हैं खासकर भाजपा व कांग्रेस में टिकट से उपजा असंतोष प्रत्याशियों के लिए दुविधा का सबब बना हुआ है।

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देखना अब यह होगा कि तिजारा विधानसभा चुनावी रण में ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो चुनाव नतीजों पर ही निर्भर होगा, लेकिन यह तय है कि इस बार तिजारा विधानसभा सीट पर फिल्हाल कड़ा मुकाबला का आसार बना हुआ है और इस सीट पर यादव व मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बेशक अधिक हैं, लेकिन अन्य जातियों के मत भी प्रत्याशियों के जीत -हार का फैसला करने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।

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