Paush Amavasya Significance पौष अमावस्या आज क्यों है विशेष? पिंडारा तीर्थ में श्रद्धालु करेंगे पिंडदान और पितृ तर्पण

paush amavasya significance

जींद Paush Amavasya Significance वर्ष की अंतिम और पौष माह की अमावस्या शुक्रवार 19 दिसंबर को है। जयंती देवी मंदिर के पुजारी नवीन शास्त्री ने बताया कि पंचांग के अनुसार पौष अमावस्या तिथि की शुरुआत 19 दिसंबर सुबह चार बजकर 59 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 20 दिसंबर सुबह सात बजकर 12 मिनट पर होगा। ऐसे में श्रद्धालुओं द्वारा अमावस्या से जुड़े पितृ तर्पण, स्नान और दान जैसे शुभ कार्य शुक्रवार को ही किए जाएंगे। हिंदू धर्म में पौष माह की अमावस्या का विशेष महत्व है। इस पौष अमावस्या के दिन कई शुभ मुहूर्त बनेंगे। जिनमें धार्मिक कार्य करना विशेष फलदायी माना जाता है। शुक्रवार को पौष अमावस्या के दिन बहा मुहूर्त सुबह 5 बजकर 19 मिनट से 6 बजकर 14 मिनट तक। इस समय स्नान, ध्यान, जप और तर्पण करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

वहीं अमृत काल सुबह 9 बजकर 43 से 11 बजकर 01 मिनट तक। इस समय किए गए शुभ कार्यों का विशेष फल मिलता है व कार्यों को विशेष सिद्धि प्राप्त होती है। वहीं अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। यह समय सार्वभौमिक रूप से शुभमाना जाता है। राहुकाल 11 बजकर 01 मिनट से 12 बजकर 18 मिनट तक रहेग। इस दौरान शुभ कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है। इस अमावस्या पर श्रद्धालुओं को विशेष संयोग मिलेगा। पौष अमावस्या का शुक्रवार के दिन पडऩा माता लक्ष्मी की कृपा से जुड़ा शुभ संयोग भी बना रहा है। मान्यताओं के अनुसार शुक्रवार को श्रद्धा भाव से किया गया दान और पुण्य कर्म आर्थिक स्थिरता, सुख और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अमावस्या के दिन पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों के किए गए कमों से प्रसन्न होकर सुख, समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। ऐसे में पौष अमावस्या पर बनने वाले शुभ योग और मुहूर्त का महत्व और भी बढ़ जाता है।

पिंडारा तीर्थ में आज लगेगी श्रद्धा की डुबकी paush amavasya significance

पांडू पिंडारा स्थित पिंडतारक तीर्थ पर शुक्रवार को पौष अमावस्या पर श्रद्धालु ठंड के बीच सरोवर में स्नान, पिंडदान करके करके तर्पण करेंगे। पिंडतारक तीर्थ के संबंध में किदवंती है कि महाभारत युद्ध के बाद पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पांडवों ने यहां 12 वर्ष तक सोमवती अमावस्या की प्रतीक्षा में तपस्या की। बाद में सोमवती अमावस के आने पर युद्ध में मारे गए परिजनों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया। तभी से यह माना जाता है कि पांडु पिंडारा स्थित पिंडतारक तीर्थ पर पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है। महाभारत काल से ही पितृ विसर्जन की अमावस्या, विशेषकर सोमवती अमावस्या पर यहां पिंडदान करने का विशेष महत्व है।

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