Kalaratri Devi हरियाणा और देशभर में दुर्गा पूजा का पर्व न केवल धार्मिक उत्सव का प्रतीक है, बल्कि यह आध्यात्मिक चेतना, शक्ति और मनोबल का पर्व भी है। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति, कालरात्रि, की उपासना का विधान है। कालरात्रि के रूप और शक्ति को समझना न केवल भक्तों के लिए बल्कि साधकों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।
कालरात्रि: शक्ति और स्वरूप Kalaratri Devi
कालरात्रि को दुर्गा माता का वह रूप माना जाता है, जो सभी नकारात्मक शक्तियों, पापों और भय को नष्ट करने वाली है। उन्हें कालरात्रि इसलिए कहा जाता है क्योंकि ‘काल’ का अर्थ समय या मृत्यु और ‘रात्रि’ का अर्थ अंधकार से है। यह शक्ति अज्ञान, भय और पाप के अंधकार को समाप्त कर उज्ज्वल प्रकाश फैलाती है। मान्यता है कि जो साधक सच्चे मन से माँ कालरात्रि की उपासना करता है, उसके जीवन की सारी नकारात्मकताएँ और भय दूर हो जाते हैं।
कालरात्रि का रूप अत्यंत भयभीतकारी है। वे गहरी नीली या काली रंगत में, चार हाथों वाली, सशस्त्र और ज्वालामुखी जैसे तेजस्वी शक्ति से परिपूर्ण दिखाई जाती हैं। उनके हाथों में तलवार और त्रिशूल होता है, जो अधर्म और असत्य को नष्ट करता है। उनके काले रंग को प्रतीक माना जाता है कि वे अज्ञान और अंधकार में भी प्रकाश फैलाती हैं। उनका तेज इतना प्रचंड है कि भक्त उनके दर्शन मात्र से ही मानसिक और आत्मिक शक्ति प्राप्त करता है।
सप्तमी का महत्व Kalaratri Devi
दुर्गा पूजा का सप्तमी दिन विशेष महत्व रखता है। इसे माँ कालरात्रि की पूजा का दिन कहा गया है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार चक्र’ में स्थित रहता है। योग और आध्यात्मिक ग्रंथों के अनुसार, सहस्रार चक्र ब्रह्मांड और आत्मा के बीच का सेतु है। इस चक्र में साधक का ध्यान केंद्रित होने पर ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। यह न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा देता है, बल्कि व्यक्ति की मानसिक शक्ति, साहस और आत्मविश्वास को भी बढ़ाता है।
सप्तमी पूजा में साधक माँ कालरात्रि की मंत्रों के माध्यम से उपासना करता है। मंत्रों का उच्चारण और मन का एकाग्र होना भक्त के जीवन में नकारात्मक शक्तियों, भय और मानसिक अशांति को समाप्त करता है। यही कारण है कि सप्तमी को शक्तिपात और आत्मशक्ति के लिए सर्वोत्तम दिन माना जाता है।
समाज और संस्कृति में महत्व Kalaratri Devi
हरियाणा में दुर्गा पूजा का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन देवी कालरात्रि की पूजा घरों, मंदिरों और समाजिक स्थल पर बड़े श्रद्धा भाव से की जाती है। लोग एक-दूसरे के घरों में मिलकर व्रत, भजन, कीर्तन और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
साथ ही, यह पर्व महिलाओं के सामूहिक उत्सव का भी प्रतीक है। कालरात्रि की शक्ति अंधकार और भय को समाप्त करती है, जो महिलाओं के साहस, नेतृत्व और समाज में सक्रिय भूमिका को उजागर करता है। माता का यह रूप बताता है कि केवल पुरुष शक्ति ही नहीं, बल्कि नारी शक्ति भी समाज और संस्कृति के स्थायित्व में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण Kalaratri Devi
आध्यात्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि कालरात्रि की उपासना से मानसिक और आत्मिक ऊर्जा में वृद्धि होती है। साधक अपने भीतर की नकारात्मक प्रवृत्तियों—क्रोध, मोह, अहंकार और लोभ—से मुक्त होता है। यह शक्ति साधक को आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करती है।
सप्तमी के दिन साधक रात्री समय में विशेष ध्यान और पूजा करता है। दीप प्रज्वलन, लाल वस्त्र अर्पित करना और मंत्र जाप करना इसके अनिवार्य अंग हैं। कहा जाता है कि जो भक्त सम्पूर्ण श्रद्धा से माँ कालरात्रि का ध्यान करता है, उसे जीवन की सभी बाधाओं और संकटों से मुक्ति मिलती है।
स्वास्थ्य और मानसिक शक्ति Kalaratri Devi
कालरात्रि की उपासना केवल धार्मिक कर्म नहीं है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी मानी गई है। ध्यान और साधना के दौरान शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। मानसिक तनाव, भय और नकारात्मक भावनाएँ धीरे-धीरे कम होती हैं। भक्त का मन, सहस्रार चक्र में स्थित होने से, ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ता है। यह अनुभव उसे आत्मविश्वास, साहस और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है।
आज के समय में, जहाँ जीवन तनावपूर्ण और प्रतियोगिताओं से भरा है, माँ कालरात्रि की उपासना और साधना अधिक प्रासंगिक हो गई है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भय, तनाव और मानसिक अशांति रहती है। कालरात्रि की शक्ति इन सभी नकारात्मक शक्तियों को दूर कर जीवन में उज्ज्वलता और सकारात्मक ऊर्जा भरती है। युवाओं और बच्चों को भी इस दिन पूजा और भजन के माध्यम से माँ कालरात्रि की शक्ति से परिचित कराया जाता है। यह शिक्षा और संस्कार का माध्यम भी बनता है।
सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की उपासना न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक विकास का माध्यम भी है। अंधकार, भय और नकारात्मक प्रवृत्तियों को नष्ट कर यह शक्ति जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, साहस और आत्मविश्वास भरती है। हरियाणा में इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है और यह समाज, संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना को जोड़ने का प्रतीक बनता है।
माँ कालरात्रि की उपासना हमें यह संदेश देती है कि हर व्यक्ति के भीतर वह शक्ति मौजूद है जो अंधकार और भय को हराकर जीवन में उजाला ला सकती है। यही शक्ति हमें आत्मशक्ति, मानसिक स्थिरता और सामाजिक जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाती है।
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